
‘मौनी अमावस्या पर भगदड़ में हमारी मां खो गईं। हम मम्मी को ढूंढते हुए हॉस्पिटल गए, वहां भी नहीं मिलीं। हमने मम्मी की फोटो और एड्रेस थाने पर दे दिया है। 28 जनवरी की रात से ढूंढ रहे हैं। अब हम महाकुंभ छोड़कर घर जा रहे हैं।’
ललिता देवी, सीताबाई की बहन, सावित्री देवी के परिवार जैसे तमाम लोग इस महाकुंभ में मिसिंग हैं। वो लोग अपनों को खोज रहे हैं। कभी खोया-पाया केंद्र, कभी पुलिस स्टेशन तो कभी संगम घाट पर भटक रहे हैं। डिजिटल खोया-पाया केंद्र पर मंगलवार देर रात हुई भगदड़ के करीब 36 घंटे बाद तक 1500 से ज्यादा लोग अपनों को खोजते हुए पहुंचे।हालांकि यह आंकड़ा कम भी हो सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों को प्रशासन बसों या अन्य साधनों में बैठाकर उनके घरों तक रवाना कर चुका है।
आधिकारिक तौर पर ये आंकड़ा बताने के लिए कोई तैयार नहीं कि भगदड़ के बाद से कितने लोग मिसिंग हैं और कितने मिल गए? ये डेटा हमने विभिन्न खोया-पाया केंद्रों, सहायता केंद्रों पर पहुंचकर जुटाया है, जो सच के काफी करीब है।