
23 अप्रैल के आतंकी हमले के बाद बदले सुरक्षा हालात, सीमित स्वरूप में लौट रहा है भारत-पाक सीमा का प्रतीक समारोह
भारत-पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण हालातों के चलते अस्थायी रूप से रोकी गई ‘बीटिंग रिट्रीट’ सेरेमनी एक बार फिर 20 मई से बहाल हो रही है। हालांकि इस बार यह परंपरा कुछ महत्वपूर्ण बदलावों के साथ शुरू होगी – न तो बॉर्डर गेट खोले जाएंगे और न ही दोनों देशों के जवानों के बीच पारंपरिक हाथ मिलाने की रस्म होगी।
नई दिल्ली/अमृतसर (ए)। भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक तनाव के कारण 7 मई से स्थगित की गई ‘बीटिंग रिट्रीट’ सेरेमनी आज यानी 20 मई से दोबारा शुरू की जा रही है। अटारी-वाघा, हुसैनीवाला (फिरोजपुर) और सदकी बॉर्डर (फाजिल्का) पर आयोजित होने वाली इस प्रतिष्ठित परेड में इस बार कई परंपराएं बदली नजर आएंगी।
बीएसएफ सूत्रों के अनुसार, समारोह की सैन्य भव्यता तो बरकरार रहेगी, लेकिन सीमा पर आपसी सहयोग की कुछ परंपराएं अब दिखाई नहीं देंगी। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि इस बार सीमा गेट नहीं खोले जाएंगे और न ही बीएसएफ और पाक रेंजर्स एक-दूसरे से हाथ मिलाएंगे।
अब गेट के आर-पार झंडा उतारेंगे जवान
दोनों देशों के सुरक्षाबल अब अपने-अपने तिरंगे और चांद-सितारे के झंडे को बंद गेटों के आर-पार खड़े होकर उतारेंगे। यह निर्णय सुरक्षा कारणों के चलते लिया गया है, जो 23 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से लागू है।
सख्त निगरानी, सीमाओं पर बढ़ी चौकसी
बीएसएफ और खुफिया एजेंसियों ने बॉर्डर पर अतिरिक्त सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है। निगरानी व्यवस्था और गश्त बढ़ा दी गई है। स्थानीय प्रशासन को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है। सीमावर्ती इलाकों में सेना की भी तैनाती की गई है।
23 अप्रैल से अब तक की प्रमुख घटनाएं:
- 23 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद 24 अप्रैल से हैंडशेक परंपरा रोक दी गई।
- ऑपरेशन ‘सिंदूर’ की सफलता के बाद गश्त और सुरक्षा व्यवस्था में कड़ा बदलाव किया गया।
- 10 मई के सीजफायर के बाद स्थितियां धीरे-धीरे सामान्य हो रही हैं।
- हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के कैदियों को सौंपा।
- अफगान ट्रकों को अटारी बॉर्डर से आवाजाही की अनुमति दी गई।
- किसानों को सीमापार खेतों में जाने की इजाजत मिली।
क्या है ‘बीटिंग रिट्रीट’?
यह एक सैन्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम है जो दोनों देशों के जवान रोज शाम को आयोजित करते हैं। इसमें राष्ट्रध्वज को सम्मानपूर्वक उतारने की परंपरा, समन्वित मार्चिंग और दर्शकों के सामने सैन्य शौर्य का प्रदर्शन होता है। अटारी-वाघा बॉर्डर इस आयोजन का सबसे प्रसिद्ध स्थल है, जहां देश-विदेश से सैकड़ों पर्यटक इसे देखने पहुंचते हैं।