
भारत की बड़ी सैन्य कार्रवाई के बाद अमेरिका का संतुलित रुख कई सवाल खड़े करता है – क्या रणनीतिक साझेदारी के बावजूद ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान के पक्ष में झुक रहा है?
7 मई 2025 को भारत द्वारा पाकिस्तान और पीओके में किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दुनिया भर में हलचल मचा दी। आतंकी ठिकानों पर किए गए इस सटीक हमले में 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए और मसूद अजहर के भाई जैसे बड़े आतंकी लक्ष्य निशाने पर लिए गए। लेकिन इस सैन्य सफलता के बाद जब कूटनीति की बारी आई, तो अमेरिका के रुख ने नई बहस छेड़ दी—क्या वॉशिंगटन अब भी पाकिस्तान को रणनीतिक प्राथमिकता दे रहा है, और क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत से दूरी बना रहे हैं?
नई दिल्ली (ए)। भारत की सैन्य क्षमता का स्पष्ट प्रदर्शन करने वाला ‘ऑपरेशन सिंदूर’ न केवल आतंकवादियों के खिलाफ सख्त संदेश था, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका का भी प्रतीक था। लेकिन इस निर्णायक कदम के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया ने कई चिंताएं खड़ी कर दी हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की सराहना करने की बजाय, अमेरिका ने संतुलित भाषा का प्रयोग किया और पाकिस्तान से आतंकी गतिविधियां रोकने की अपील तक सीमित रहा।
ऐसे में सवाल उठता है—क्या अमेरिका अपने पुराने रणनीतिक साझेदार पाकिस्तान को आज भी प्राथमिकता दे रहा है?
इतिहास गवाह है, अमेरिका और पाकिस्तान का रिश्ता केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि अवसरवादी भी रहा है।
शीत युद्ध के समय से ही पाकिस्तान अमेरिका के खेमे में था, जबकि भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और सोवियत संघ से करीबी अमेरिका को खटकती थी। 1971 में जब भारत ने बांग्लादेश की आज़ादी में निर्णायक भूमिका निभाई, तब अमेरिका ने सातवां बेड़ा भेजकर पाकिस्तान का पक्ष लिया था। 2011 में ओसामा बिन लादेन की पाकिस्तान में मौजूदगी साबित हो गई, फिर भी अमेरिका ने कोई बड़ी सजा नहीं दी।
तो क्या आज की स्थिति अलग है? शायद नहीं।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया दिखाती है कि वह अब भी दक्षिण एशिया में ‘बैलेंस ऑफ पावर’ की अपनी पुरानी नीति पर कायम है। अमेरिका नहीं चाहता कि पाकिस्तान पूरी तरह चीन के पाले में चला जाए। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति, परमाणु ताकत और अफगानिस्तान-तालिबान समीकरण में उसकी भूमिका अमेरिका को मजबूर करती है कि वो उसे पूरी तरह न छोड़ पाए।
ट्रंप प्रशासन का दृष्टिकोण भी इसी नीति से जुड़ा दिखता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को S-400 मिसाइल डील पर CAATSA प्रतिबंधों से छूट देकर यह जरूर दिखाया था कि भारत एक अहम साझेदार है। लेकिन जब भी बात पाकिस्तान की आती है, ट्रंप सतर्क हो जाते हैं। उनका मकसद भारत से दुश्मनी नहीं, बल्कि पाकिस्तान को भी नियंत्रण में रखना है।
भारत के लिए सबक क्या है?
भारत अब अमेरिका का छोटा साझेदार नहीं, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अहम शक्ति बन चुका है। क्वाड और iCET जैसे समझौते इसका उदाहरण हैं। लेकिन अमेरिका की अपनी प्राथमिकताएं हैं—वह अपने राष्ट्रीय हित पहले रखता है। यही कारण है कि चीन के खिलाफ अमेरिका खुलकर भारत के साथ खड़ा होता है, लेकिन पाकिस्तान के मसले पर पीछे हट जाता है।
जेफरी डी. सैक्स की बात यहां प्रासंगिक लगती है—”जब कोई देश अमेरिका से आगे निकलने लगता है, तो अमेरिका उसे निशाने पर लेना शुरू कर देता है।” अगर भारत भी भविष्य में बड़ी ताकत बन गया, तो शायद वही रवैया हमारे साथ भी अपनाया जाए।
इसलिए भारत को चाहिए कि वह अपनी स्वतंत्र नीति बनाए रखे, वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज और ताकत दोनों को बढ़ाए, और एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरे—ऐसा विकल्प जो किसी का मोहताज नहीं।