
आज देशभर में धूमधाम से हल षष्ठी का पर्व मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को बलराम जयंती के नाम से भी जानते हैं.
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हर वर्ष हल षष्ठी का पर्व मनाया जाता है. हल षष्ठी व्रत को ललई छठ, बलराम जयंती या हरछठ भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन बलराम जी (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) का जन्म हुआ था. बलराम का अस्त्र हल होने के कारण इसे हल षष्ठी कहा जाता है. बलराम को हलधर और कृषि के देवता माना जाता है. यह व्रत मुख्यतः संतान सुख, संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है. हल षष्ठी व्रत में पूजा पाठ करने के बाद कथा सुनना व कहने का विशेष महत्व है, तभी यह व्रत संपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि हल षष्ठी की कथा सुनने व कहने मात्र से सभी कष्ट व परेशानियों से मुक्ति मिलती है.
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी जो गर्भवती थी और जिसका प्रसव काल अत्यंत निकट था. एक तरफ ग्वालिन अपनी प्रसव पीड़ा से बेहद व्याकुल थी तो दूसरी ओर उस पीड़ा में भी उसका मन गाय भैंस का दूध दही बेचने की तरफ लगा हुआ था. ग्वालिन सोचने लगी की अगर मेरा प्रसव हो गया तो यह गौ रस यूं ही पड़ा रह जाएगा. इसलिए ग्वालिन फटाफट उठी और सिर पर दूध दही की मटकी रखकर बेचने के लिए निकल गई लेकिन कुछ ही दूरी पर उसको असहनीय प्रसव पीड़ा हुई. इसके लिए रास्ते में वह किसी झरबेरी की ओट में चली गई और वहां जहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया.
बच्चे का जन्म देने के बाद भी उसका मन दूध, दही बेचने में लगा हुआ था. तो वह बच्चे को वहीं कपड़े में लपेटकर छोड़कर चली गई. संयोग से उस दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि थी यानी हल षष्ठी तिथि थी. गाय-भैंस के मिश्रित दूध को उसने भैंस का दूध बताकर पूरे गांव में बेच दिया. उधर जिस झरबेरी के नीचे उस बच्चे को छोड़ा था, उसके पास ही एक किसान खेत में हल चला रहा था. अचानक से किसान के बैल भड़क गए और हल का फल बच्चे के शरीर में घूस गया, जिससे बालक वहीं मर गया.
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत से काम लेकर उसी झरबेरी के कांटों से ही बच्चे को टांके लगा दिए और वहीं छोड़कर चला गया. जब ग्वालिन सारा दूध, दही बेचकर अपने बच्चे पास आई तो बच्चे को मरा हुआ देखा. बच्चे को इस अवस्था में देखकर वह समझ गई कि यह सब उसके ही पाप का फल है. मन ही मन अपने आपको कोसने लगी और सोचने लगी की अगर झूठ बोलकर मैंने गाय का दूध ना बेचा होता है और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट ना किया होता है तो मेरे बच्चे की यह दशा ना होती. उसने गांव वालों को पूरी सच्चाई बताकर प्रायश्चित करने के बारे में विचार किया.
ग्वालिन तुरंत उठी और गांव की महिलाओं को सारी बात बताकर माफी मांगने लगी और इस करतूत के बाद मिले दंड के बारे में बताने लगी. गांव की महिलाओं को ग्वालिन पर रहम आ गया और उस पर रहम खाकर क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया. जब ग्वालिन गांव से निकलकर वापस झरबरी के नीचे पहुंची तो देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका बालक जीवित अवस्था में पड़ा है. उसने ईश्वर का बहुत धन्यवाद कहा और आगे से फिर झूठ ना बोलने का प्रण लिया.