
को-पेमेंट का मतलब है क्लेम के दौरान हिस्सा चुकाना, प्रीमियम कम होगा लेकिन खर्च बढ़ सकता है
हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय उसकी शर्तों को ध्यान से समझना बेहद जरूरी है। खासकर, को-पेमेंट जैसी शर्तें, जो क्लेम के समय आपकी जेब पर असर डाल सकती हैं। प्रीमियम कम करने के लिए कुछ पॉलिसियों में को-पेमेंट का विकल्प दिया जाता है, जिसमें आपको मेडिकल खर्च का कुछ हिस्सा खुद उठाना पड़ता है। अगर इस पहलू को नजरअंदाज किया तो क्लेम के समय आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
नई दिल्ली (ए)। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय अधिकतर लोग उसकी बारीकियों को पूरी तरह नहीं समझते, जिसका खामियाजा उन्हें क्लेम के समय भुगतना पड़ सकता है। एक ऐसी ही महत्वपूर्ण शर्त है को-पेमेंट (Co-Payment), जिसका असर आपके क्लेम अमाउंट और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
क्या है को-पेमेंट?
को-पेमेंट का मतलब है कि बीमा धारक को हर क्लेम पर मेडिकल खर्च का एक निश्चित हिस्सा खुद चुकाना होगा, जबकि बाकी रकम इंश्योरेंस कंपनी देगी। उदाहरण के लिए, यदि आपकी पॉलिसी में 10% को-पेमेंट का नियम है और अस्पताल का बिल ₹1,00,000 आता है, तो आपको ₹10,000 खुद देना होगा और बीमा कंपनी ₹90,000 कवर करेगी।
कैसे पड़ता है असर?
कम प्रीमियम, ज्यादा जिम्मेदारी – को-पेमेंट वाली पॉलिसी का प्रीमियम कम होता है, लेकिन क्लेम के दौरान खर्च बढ़ सकता है।
हर क्लेम पर लागू – जितनी बार आप हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम करेंगे, को-पेमेंट का नियम हर बार लागू होगा।
हर पॉलिसी में नहीं होता अनिवार्य – कुछ हेल्थ पॉलिसियां पूरी क्लेम राशि का भुगतान करती हैं, जबकि कुछ में को-पेमेंट का विकल्प होता है।
किनके लिए फायदेमंद है को-पेमेंट?
सीनियर सिटीजन और कम आय वाले लोगों के लिए यह फायदेमंद हो सकता है क्योंकि वे कम प्रीमियम पर इंश्योरेंस कवरेज पा सकते हैं।
युवा और स्वस्थ लोग, जिन्हें कम प्रीमियम पर बीमा चाहिए, उनके लिए को-पेमेंट विकल्प सही हो सकता है।
बार-बार इलाज कराने वाले मरीजों के लिए बिना को-पेमेंट वाली पॉलिसी बेहतर होगी, क्योंकि हर क्लेम पर उन्हें अतिरिक्त भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
फैसला सोच-समझकर लें
को-पेमेंट एक दोधारी तलवार है—यह प्रीमियम कम करता है लेकिन क्लेम के दौरान आपकी जेब पर असर डाल सकता है। इसलिए, हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से पहले को-पेमेंट की शर्तों को अच्छी तरह पढ़ें और अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार सही पॉलिसी चुनें।