
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, 2026 तक सामने आएंगे आंकड़े; बिहार चुनाव से पहले जातीय राजनीति को नई दिशा मिलने की अटकलें
देश में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने पहली बार जाति आधारित जनगणना कराने को मंजूरी दे दी है। यह जनगणना मुख्य जनगणना प्रक्रिया के साथ सितंबर से शुरू हो सकती है और इसके नतीजे 2026 के अंत तक सामने आने की संभावना है। इस फैसले के राजनीतिक और सामाजिक दोनों मायनों में दूरगामी प्रभाव माने जा रहे हैं।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को जातिगत जनगणना को हरी झंडी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि यह जनगणना 1947 के बाद पहली बार की जाएगी और इसे मूल जनगणना प्रक्रिया के साथ जोड़ा जाएगा। अनुमान है कि यह प्रक्रिया सितंबर 2025 में शुरू होगी, और पूरा डेटा 2026 के आखिर या 2027 की शुरुआत तक जारी होगा।
विपक्ष लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहा था, विशेष रूप से कांग्रेस, राजद और सपा जैसी पार्टियाँ। माना जा रहा है कि बिहार में इसी साल चुनाव होने के मद्देनज़र यह फैसला अहम राजनीतिक संकेत देता है।
कानूनी संशोधन ज़रूरी
फिलहाल जनगणना अधिनियम 1948 केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती की अनुमति देता है। अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) को शामिल करने के लिए इस एक्ट में संशोधन करना होगा। अनुमान है कि इससे करीब 2,650 ओबीसी जातियों के आंकड़े सामने आएंगे।
2011 में हुई थी सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराई गई थी, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। केवल एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आँकड़े ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर डाले गए।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
फैसले के बाद विभिन्न नेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं:
- चिराग पासवान: यह फैसला समावेशी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण है।
- लालू यादव: जो हमें जातिवादी कहते थे, उन्हें अब जवाब मिल गया है।
- केशव मौर्य: यह कांग्रेस के दोहरे रवैये पर तमाचा है।
- तेजस्वी यादव: सरकार को हमारी मांग माननी पड़ी, यह हमारी जीत है।
- उदित राज: यह कांग्रेस की वैचारिक जीत है।
- नित्यानंद राय: सरकार समाज के हर वर्ग के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
जातिगत जनगणना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1979 में मंडल कमीशन का गठन हुआ जिसने ओबीसी को आरक्षण देने की सिफारिश की।
- 1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने इसे लागू किया, जिससे भारी विवाद हुआ।
- 2011 में UPA सरकार ने जाति आधारित सर्वे शुरू किया लेकिन इसका डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया।
- 2023 में बिहार पहला राज्य बना जिसने अपने स्तर पर जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए।