
टॉमहॉक और ब्रह्मोस — दो क्रूज़ मिसाइलें जो युद्ध के नियम बदल रही हैं। एक ने ईरान में कहर बरपाया, दूसरी ने पाकिस्तान की नींद उड़ाई। रेंज, स्पीड और टेक्नोलॉजी में कौन किससे आगे?
मध्य पूर्व में छिड़े ईरान-इज़राइल टकराव के बीच अमेरिका ने जिस मिसाइल से हमला बोला है, वो है ‘टॉमहॉक’—एक ऐसी मिसाइल जिसे लेकर दुनिया पहले भी अमेरिका की ताकत को पहचान चुकी है। यही वह तकनीक है जिसकी तुलना भारत की ब्रह्मोस मिसाइल से की जाती है—वही ब्रह्मोस जिसने पाकिस्तान पर कहर ढाया था। दोनों मिसाइलें अपनी-अपनी खासियतों से आधुनिक युद्धनीति में क्रांति ला रही हैं।
ईरान-इज़राइल (ए)। ईरान-इज़राइल युद्ध की आंच तेज़ हो चुकी है और अमेरिका ने इस बार अपनी घातक क्रूज़ मिसाइल ‘टॉमहॉक’ का इस्तेमाल कर दुनिया को सैन्य ताकत का संदेश दिया है। अमेरिका की पनडुब्बी से करीब 30 टॉमहॉक मिसाइलें फोर्दो न्यूक्लियर साइट की ओर भेजी गईं, जिन्होंने 400 मील दूर से लक्ष्य भेदा।
भारत की ब्रह्मोस भी बनी थी खौफ का पर्याय
इसी तरह की क्षमता भारत की ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल में भी है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब पाकिस्तान को इसका सामना करना पड़ा था, तो वह इसकी स्पीड और सटीकता के आगे बेबस दिखा। भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस अब भारत की सैन्य ताकत का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुकी है।
टेक्नोलॉजी की रेस में कौन आगे?
ब्रह्मोस की तेज रफ्तार उसे दुश्मन की एयर डिफेंस से चकमा देने में सक्षम बनाती है। वहीं, टॉमहॉक अपनी लंबी दूरी और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसे हमलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अमेरिका इसे पहले ही इराक, सीरिया और अफगानिस्तान में प्रयोग कर चुका है। ब्रह्मोस का भविष्य भी बेहद शक्तिशाली दिखता है — हाइपरसोनिक संस्करण और न्यूक्लियर क्षमता के साथ इसका विकास जारी है।