
5 घंटे में रिकॉर्ड शून्यकाल, स्पीकर ओम बिरला की पहल पर मिली अधिक बोलने की आज़ादी; तटीय व्यापार और सड़क सुरक्षा पर भी केंद्र सरकार का फोकस
लोकसभा के शून्यकाल में गुरुवार को एक ऐतिहासिक कीर्तिमान बना, जब स्पीकर ओम बिरला की पहल पर 5 घंटे में 202 सांसदों को अपनी बात रखने का अवसर मिला। यह अब तक का सबसे लंबा और सक्रिय शून्यकाल रहा। इसी दिन तटीय शिपिंग विधेयक को भी लोकसभा से पारित कर दिया गया, जिससे देश के समुद्री परिवहन क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद की जा रही है। वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क सुरक्षा पर चिंता जताते हुए बताया कि भारत में कुशल ड्राइवरों की भारी कमी है, जिससे हर साल लाखों जानें जाती हैं।
नई दिल्ली। लोकसभा में गुरुवार को शून्यकाल के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। स्पीकर ओम बिरला की पहल पर सदन का शून्यकाल 5 घंटे से अधिक तक चला, जिसमें 202 सांसदों ने विभिन्न जनहित के मुद्दे उठाए। इससे पहले वर्ष 2019 में शून्यकाल के दौरान 161 सांसदों ने अपनी बात रखी थी।
ओम बिरला ने पहले ही कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में सदस्यों को अधिक समय देने की बात कही थी, जिसे उन्होंने इस ऐतिहासिक सत्र में निभाया। यह निर्णय सांसदों की आवाज़ को और अधिक प्रबल बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।
इसी दिन तटीय शिपिंग विधेयक को भी लोकसभा से मंजूरी मिल गई। पत्तन, परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने बताया कि यह विधेयक भारत के तटीय व्यापार को सुलभ, आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में मदद करेगा। इससे घरेलू शिपिंग कंपनियों को विशेष लाभ मिलेगा और बंदरगाहों की क्षमता में वृद्धि होगी।
सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया कि हर साल लगभग 1.8 लाख लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं, जिनमें से अधिकतर घटनाएं अप्रशिक्षित चालकों के कारण होती हैं। उन्होंने बताया कि देश में फिलहाल 22 लाख कुशल ड्राइवरों की कमी है। इससे निपटने के लिए 4,500 करोड़ रुपये की लागत से 1,600 ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर बनाए जाएंगे, जिससे 60 लाख रोजगार सृजित होंगे।
वहीं, वक्फ विधेयक पर मतदान के दौरान दो भाजपा सांसदों की गैरहाजिरी — केंद्रीय मंत्री जोएल उरांव और अपराजिता सारंगी — को पार्टी ने गंभीरता से लिया है और उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है। हालांकि विधेयक पारित कराने में इसका कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि सत्ता पक्ष ने 288 सांसदों का समर्थन प्राप्त कर लिया था।