
घने जंगलों में पाया जाने वाला अर्जुन वृक्ष बना ग्रामीणों के लिए जीवनदायक औषधि, हृदय से लेकर मधुमेह तक में देता है राहत
छत्तीसगढ़ के जंगलों में सहजता से मिलने वाला अर्जुन का पेड़ केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि इंसानी सेहत के लिए भी अमूल्य वरदान है। इसकी छाल, पत्तियाँ और फल औषधीय गुणों से भरपूर हैं, जो हृदय रोगों, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अस्थमा जैसी बीमारियों में रामबाण की तरह कार्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और वन क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैला हुआ अर्जुन का पेड़—स्थानीय भाषा में जिसे ‘कौहा’ कहा जाता है—एक ऐसा प्राकृतिक खजाना है, जो वर्षों से ग्रामीण चिकित्सा पद्धतियों में उपयोग किया जाता रहा है। यह वृक्ष अपने औषधीय गुणों के कारण न केवल पारंपरिक उपचार का हिस्सा रहा है, बल्कि अब आधुनिक आयुर्वेद में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अनुज कुमार बताते हैं कि अर्जुन की छाल में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और कार्डियोप्रोटेक्टिव तत्व पाए जाते हैं। ये तत्व हृदय को मजबूती देने के साथ ही रक्त संचार को संतुलित रखते हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
ग्रामीण इलाकों में अर्जुन की छाल का काढ़ा बनाकर खाली पेट सेवन करने की परंपरा रही है, जिससे हृदय की कार्यक्षमता बेहतर होती है और रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। इसके अतिरिक्त, सूखी छाल को चूर्ण बनाकर दूध या गर्म पानी के साथ नियमित सेवन करने से शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति आती है।
डॉ. कुमार का मानना है कि अर्जुन वृक्ष गांववासियों के लिए प्रकृति का उपहार है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस पेड़ के औषधीय उपयोग की जानकारी व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ उठा सकें।
जब आधुनिक चिकित्सा के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, ऐसे में अर्जुन जैसा औषधीय पेड़ एक सुरक्षित, सुलभ और प्रभावशाली विकल्प के रूप में उभर सकता है। यदि इसके सही उपयोग और वैज्ञानिक पहलुओं का प्रचार किया जाए, तो यह पेड़ छत्तीसगढ़ से निकलकर पूरे देश में स्वास्थ्य क्रांति का माध्यम बन सकता है।