
दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में ली अंतिम सांस, ब्रेन स्ट्रोक के बाद हालत थी नाजुक; महाजनों के खिलाफ आंदोलन से लेकर तीन बार मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
झारखंड की राजनीति, आदिवासी चेतना और जनआंदोलनों के प्रतीक शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। 81 वर्षीय दिशोम गुरु ने सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। ब्रेन स्ट्रोक और गंभीर शारीरिक समस्याओं से जूझते हुए वे पिछले डेढ़ महीने से जीवन रेखा पर थे। उनके निधन से आदिवासी राजनीति की एक युगांतकारी उपस्थिति समाप्त हो गई।
दिल्ली/रांची (ए)। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संरक्षक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली। बीते डेढ़ महीने से वे ब्रेन स्ट्रोक, किडनी फेल्योर और अन्य जटिलताओं के चलते अस्पताल में भर्ती थे। लंबे समय से डायलिसिस पर रह रहे सोरेन को जीवनरक्षक प्रणाली पर रखा गया था, लेकिन स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई।
संघर्ष से सियासत तक: दिशोम गुरु की जीवनगाथा
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव में हुआ था। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। जब वे मात्र 13 वर्ष के थे, तब उनके पिता की हत्या सूदखोर महाजनों ने कर दी थी। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। पढ़ाई छोड़ उन्होंने महाजनी व्यवस्था के खिलाफ आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया और 1970 में ‘धान कटनी आंदोलन’ के माध्यम से जन-आंदोलन का चेहरा बने।
महाजनों ने कई बार उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश की। एक बार जब गुंडों ने उन्हें घेर लिया, तब बरसात के मौसम में उफनती बराकर नदी में बाइक समेत कूदकर उन्होंने अपनी जान बचाई। इस घटना के बाद आदिवासी समाज ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘देश का गुरु’ कहना शुरू किया।
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल स्थायित्व से अधिक संघर्षों का प्रतीक रहा। 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के दस दिन बाद ही उन्हें बहुमत न होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। 2008 में वे फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन विधायक न होने के कारण उन्हें छह महीने में चुनाव जीतना जरूरी था।