
गंभीर की कड़क कोचिंग, गिरता ग्राफ और युवाओं को जगह देने की सोच ने 10,000 रन से पहले थमाया सफर
36 साल की उम्र में जब कई क्रिकेटर्स अपने अनुभव का सुनहरा दौर जीते हैं, विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहकर सबको चौंका दिया। केवल आंकड़ों की दौड़ नहीं, बल्कि आत्म-संतुलन और टीम के भविष्य को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने अपना सफर वहीं रोका, जहाँ वे खुद से संतुष्ट नहीं थे।
नई दिल्ली (ए)। भारतीय क्रिकेट के महान बल्लेबाज विराट कोहली ने 12 मई को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेकर अपने 15 साल के शानदार रेड बॉल करियर का समापन किया। अगर वे कुछ समय और खेलते तो 10,000 टेस्ट रन पूरे कर भारत के टॉप-3 स्कोरर्स में जगह बना सकते थे, लेकिन कोहली ने रिकॉर्ड के बजाय आत्ममूल्यांकन को प्राथमिकता दी।
टेस्ट में भारत के लिए चौथे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले कोहली, देश के टॉप-5 टेस्ट स्कोरर्स में सबसे पहले संन्यास लेने वाले खिलाड़ी भी बन गए। सचिन तेंदुलकर जहां 40 की उम्र तक खेले और 51 टेस्ट शतक जमाए, वहीं विराट ने 36 में ही ब्रेक लगा दिया।
🧠 कोहली के संन्यास के पीछे की 5 अहम वजहें:
फ़ॉर्म की वापसी नहीं हुई
2019 के बाद से कोहली का टेस्ट प्रदर्शन गिरता चला गया। जहाँ उन्होंने 2019 तक 7202 रन बनाए थे, वहीं अगले 5 सालों में औसत सिर्फ 31 का रहा। कोरोना के बाद बॉलिंग फ्रेंडली पिचों और लगातार आउट ऑफ फॉर्म रहने ने उनके आत्मविश्वास को प्रभावित किया।
कोच गंभीर की ‘नो स्टार कल्चर’ नीति
गौतम गंभीर के कोच बनने के बाद टीम में अनुशासन और ‘टीम फर्स्ट’ कल्चर पर जोर बढ़ा। परिवार के साथ समय, मीडिया हाईलाइट्स और सीनियर प्लेयर्स की छूट पर लगाम ने कोहली जैसे खिलाड़ियों के लिए माहौल नया और असहज बना दिया।
रोहित शर्मा के संन्यास का प्रभाव
टीम के साथी और वनडे कप्तान रोहित शर्मा ने 7 मई को टेस्ट से संन्यास लिया। दोनों के बीच समान सोच और टाइमिंग ने यह संकेत दिया कि शायद यह एक युग का समापन है।
ऑफ-स्टंप ट्रैप में फँसना जारी रहा
ऑस्ट्रेलिया दौरे की सीरीज में एक शतक के अलावा कोहली 7 पारियों में ऑफ-स्टंप के बाहर की गेंदों पर लगातार स्लिप में आउट होते रहे। यह तकनीकी कमजोरी भी उनके मन में संन्यास की सोच को मजबूत करती रही।
आंतरिक संतुलन और आत्म-मूल्यांकन
कोहली ने कहा था कि वे खुद को टेस्ट क्रिकेट में अब आगे बढ़ते नहीं देख पा रहे। आंकड़ों की होड़ के बजाय अपने भीतर की आवाज सुनना उन्हें बेहतर लगा। यही सोच उन्हें अलग बनाती है।